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  • Diksha Dubey

मैं अहंकार हूं।

Updated: Oct 9, 2020


तेरे अंग अंग मैं संग संग

मेरा एक आदि अौर अंत अनंत

तेरे कण कण में हुं सना हुआ

तेरे रोम रोम में बसा हुआ।


रग रग में तेरे संचार मेरा

जग जग करता श्रृंगार मेरा

मन कितना भी शीतल तेरा,

उसमें प्रति पल अंगार मेरा।

तुझमें हूं मैं, मुझमें है तू

पर मिलता ना कभी रूबरू

क्षण क्षण तेरा मैं अंत रचूं

पग पग तेरे ही संग चलूं

जब अपने रंग में रंग जाऊं फिर दूजे की ना एक सुनूं।



निंदा चुगली से फलूं फुलूं

छल कपट में पल पल घुलूं मिलूं

अहम प्रमुखता सर्वश्रेष्ठ है,

जीवन भर इसमें उगूं डुबूं।


तेरे संस्कार लगे दाव पर है

तेरे पांव बंधे हर नाव से है

मन में जो भभकता व्देष तेरे

वो मेरे ही स्वभाव से है।


चाहे कांटों पर मुझे चलना हो

चाहे छोड़कर देश निकलना हो

जल कर सब ख़ाक में मिलना हो

मैं तेरे साथ रहुंगा, सब तेरे साथ सहुंगा।



मुझे अहंकार बताओ तुम

या आन को नित चमकाओ तुम

अपनी चमकीली शान छवि,

बस स्नेह से यूं सहलाओ तुम।


हर किसी में तुझको दिखता हूं

हर मोड़ पर तुझसे मिलता हूं

तूं झांक ले खुद में एक बार

मैं तुझमें ही तो रहता हूं।


शील विवेक का नाश हूं मैं

हर ज्ञान का विनाश हूं मैं

धर धीरज का अंतिम अंत हुं मैं

कष्टों का खिला बसंत हुं मैं

और विपदाओं का ग्रंथ हुं मैं।


मैं ही तेरा यम तेरा काल हूं

जकड़ा सदियों से बेताल हूं

तू मुझमें ही फंसता जाए,

ऐसा विशाल सा जाल हूं।

पर बात खरी मेरी सुन ले,

मैं मज़ा तो बस फिलहाल हूं।


ये आन रखी रह जायेगी

ये शान तेरी मिट जायेगी

मिट्टी से आया है एक दिन

मिट्टी बनकर रह जायेगी।


सोच ले फिर क्या करेगा, इस झूठे अभिमान का

संकट जब सामने पायेगा, तु स्मरण करे भगवान का

बस स्मरण करे भगवान का।

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