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कलयुग में जीवन में शांति की खोज संभव है?

  • Diksha Dubey
  • May 28, 2020
  • 3 min read

Updated: Oct 9, 2020


हां, कलयुग में शांति की खोज भी संभव है और निश्चित ही शांति की प्राप्ति भी।

अब इस खोज में निकले ही हैं तो सर्वप्रथम अशांति के कारण को समझते है।


ज़रा बचना तुम इस मधुर शहद से , ये तुमको फुसलाती है।

अब देखना है कि मक्खी मधु में फंसती है या बस चख कर उड़ जाती है।


मधु से भरा कटोरा दिखने के पश्चात् एक मक्खी के पास दो विकल्प होते हैं।

पहला विकल्प: अपने भूख मिटाने हेतु आवश्यकतानुसार मधु का सेवन करके अपने कार्य मार्ग पर उड़ान भरना।

दूसरा विकल्प: अपने कर्तव्य को भुलाकर मधु के कटोरे में डुबकी मारकर, तरंगों में गोते खाते हुए मधु तृष्णा बुझाते पेट भरने के पश्चात् मन भरने के लक्ष्य पर डटे रहना।


इसी प्रकार मनुष्य भी एक मक्खी के भांति है जिसका कटोरा काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार से भरा हुआ है।

बिना इस बात को समझे दिन प्रतिदिन फंसते ही जा रहें हैं और यह तो आत्म व्याख्यात्मक है कि मधु में डुबकी लगाने के पश्चात् कोई मक्खी जीवित नहीं बची।

ठीक इसी तरह जब मनुष्य अपने भाग-भोग में अत्याधिक मग्न हो जाता है तथा आत्मा का परमात्मा से योग को विसरा देता है तब वह जीवन के अलौकिक सुख-शांति से वंचित रह जाता है।

मनुष्य के द्वारा चुने गए इस मार्ग पर यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, वैभव सब कुछ है बस शांति का अभाव है, इसलिए आइये इन पांच विकृतियों का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं।


काम :

काम का वास्तविक अर्थ है कामना करना, जैसे कि यह मिल जाए, वह मिल जाए, सब मिल जाए परन्तु ध्यान रहे ना वक्त से पूर्व कुछ मिला है नाही वक्त के पश्चात्। तो क्या कर्म करना छोड़ दें? नहीं, " कर्मफलहेतुर्भुर्मा ये संन्गोस्त्वकर्माणि", कर्म पर पुण्यत: तुम्हारा ही अधिकार है पर फल पर नहीं। इसलिए कर्म करना तो दायित्व है और काम को चखना भी बस डुबकी ना मारें।


क्रोध:

क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है और जीवन में अशांति की हिलोरें बढ़ाने लगती है।

देखा जाए तो क्रोध को नियंत्रित किया जा सकता है अगर क्रोध आने पर हम अपने आप से पूछे कि क्या क्रोध के अतिरिक्त कोई और प्रतिक्रिया का विकल्प नहीं? अगर इस बात पर प्रकाश डाले तो क्रोध से दूसरों को क्षति से पहले हमें खुद इसका ऋण अपने मानसिक शांति के मूल्य से चुकाना पड़ता है।

क्रोध का मूल कारण है तामसी भोजन मांस, मछली, अण्डा, शराब क्यूंकि कहा जाता है "जैसा खाएं अन्न वैसा होवे मन जैसी पीये पानी वैसी होवे वानी"। इस बात को समझकर शांति की ओर एक और कदम बढ़ाते हैं।


मोह:

जब स्नेह एक हद से आगे बढ़ जाता है तब वह मोह का आकार ले लेता है। स्नेह तो ईश्वर से और उनकी बनाई हर वस्तु से होना चाहिए तत्पश्चात मोह में नहीं फंसना चाहिए आखिर किस बात का मोह करें जब खाली हाथ आएं हैं और खाली हाथ जाना है!


लोभ:

"जो मिला है वह और चाहिए" इस भाव को लोभ कहते हैं। मनुष्य शरीर किराये का मकान है वक्त पूरा होने पर बिना नोटिस जारी किए खाली करना पड़ेगा, तो भौतिक नश्वर वस्तुओं का संग्रह करने का क्या लाभ?

लोभ का विपरीत है संतुष्टी, संतोष, शुख और शांति।

अब निर्णय आपका है क्यूंकि लोभ से किसी का लाभ नहीं हुआ।


अहंकार:

"एको अहम् व्दितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति।"

रावण का यही अहंकार उसके विनाश का कारण बना। तिनों लोकों का अव्दितीय विजेता, धन, बल और ज्ञान से समृद्ध मात्र दो वनवासियों तथा वानरों के टोली से सर्वनाश करवा बैठा फिर हम आप तो मनुष्य मात्र है। इस बात का इतिहास गवाह है कि अहंकार पर विनम्रता श्रेष्ठ है और अंतर में शांति का रहस्य भी।


आखिर में अगर काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार को नियंत्रित कर लें तब समझो की शांति के मार्ग की आधी यात्रा तय हो गई है और शेष यात्रा तय करने के लिए एक ऐसे मार्गदर्शक की जरूरत है जो खुद इन विकृतियों से परे हैं और निरंतर आपको इन विकृतियों को तजने का अभ्यास करायें।

क्युंकि....

जो काम दवा ना करती है, वह काम दुआ कर देती है।

जब कामिल मुरशिद मिलता है, तब बात खुदा से होती है।

 
 
 

2 Comments


Diksha Dubey
Diksha Dubey
Jun 02, 2020

I'm grateful that you liked it 😊

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ghjklasdfg778
Jun 02, 2020

Amazing write-up 💯💯💯

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